शहीद दिवस पर विशेष
(अल्मोड़ा से शिवेंद्र गोस्वामी की रिपोर्ट)
अल्मोडा़। सन् 1942 में जनपद मुख्यालय से 70 किमी दूर लमगड़ा विकास खण्ड के अन्तर्गत सालम क्षेत्र को आजदी के रणबांकरों ने कुछ समय के लिये अंग्रेजों से आजाद करा लिया था, तब सालम जैंती-धामद्यों में अंग्रेजी सेना ने सालम के क्रान्तिकारियों पर गोली चलाई थी। जिसमें सालम के ग्राम चौकुना निवासी नरसिंह व काण्डे निवासी टीका सिंह षहीद हो गये थें। उनकी शहादत में प्रति वर्ष की भॉति इस वर्श भी आज 25 अगस्त को धामद्यो सालम में षहीद दिवस मनाया जा रहा हैं।
ज्ञापव्य हो कि देष की आजादी के लिए 09 अगस्त 1942 को महात्मा गॉधी के करो या मरों नारे के बाद पूरे देष के साथ ही पहाड़ के सुदूरवर्ती क्षेत्र सालम में भी आंदोलन ने जोर पकड़ा तब हालत यह थी कि 9 अगस्त 1942 से पूर्व पूरे देष के प्रमुख नेताओं को ब्रिटिष हुकूमत ने गिरफ्तार कर लिया था। जिसके कारण आंदोलन की बागडोर किसी एक व्यक्ति के हाथ में नहीं रह गयी थीं। तथा सभी आंदोलनकारियों ने एक तरह से आंदोलन का नेतृत्व अपने-अपने हाथों में ले लिया था।
सालम के षेर नाम से जाने जाने वाले स्वतंत्रता सेनानी प्रताप सिंह बोरा के नेतृत्व में सालम क्षेत्र में स्वतंत्रता आंदोलन ने जो पकडा़ तथा आंदोलनकारियों ने जैंती डाकखाने में आग लगाकर उसे फूंक दिया। बिटिष हुकूमत के एक विद्यालय के प्रधानाध्यापक को आंदोलनकारियों ने गांधी टोपी पहनाकर उसे स्वतंत्रता की जंग के लिए नारे लगाने को मजबूर कर दिया।
आजादी के दीवानें उग्र आंदोलनकारियों ने सालम क्षेत्र के एक पटवारी व कानूनगो की मूंछेकटवाकर उसकी बेरहमी से पिटाई कर डाली। सालम क्षेत्र के क्रान्तिकारियों ने क्षेत्र के दर्जनों गांवों में अपनी हुकूमत चलानी शुरु कर दी।
बसन्तपुर में कमलापति बहुगुणा व नयन सिंह बिश्ट उर्फ वर्मा जी भीतर ही भीतर आंदोलन को गति देने के लिए रणनीति बनाने लगे तो सांगड़ के क्रान्तिवीर राम सिंह आजाद को उग्र आंदोलन को देखते हुए क्षेत्रीय पटवारी साधु का वेष बनाकर यहां से भागकर अल्मोडा़ पहुंच गया तथा उसने स्थिति से अवगत कराया। जिस पर अंग्रेजी अधिकारी बौखला गये और उन्होंने सालम में क्रान्तिकारियों द्वारा चलाये जा रहें आंदोलन को कुचलने के लिए अल्मोड़ा से गोरी पल्टन सालम भेज दी।
इस पल्टन ने अल्मोडा़ से सालम को जाने वाले मागों के किनारे के गांवों में इस कदर आतंक मचाया कि ग्रामीणों के हल, मूसल, कृशि यंत्र तक जला डाले तथा खेतों में खड़ी फसल को नश्ट कर दिया। गोरी सेना के इस आतंक से आक्रोषित सालम के क्रान्तिकारी बड़ी संख्या में काण्डे गांव के ऊपर ऊँची पहाड़ो धाम जो अब धामद्यो को नाम से जानी जाती हैं। एकत्रित हो गये और गोरी पल्टन ज्यों ही जैंती गांव के समीप पहुंची तो पहले से ही धामद्यो टापू पर एकत्रित क्रान्तिकारियों ने भारत माता की जयघोश के नारे के साथ गोरी पल्टन पर जबर्दस्त पथराव कर दिया। इस पथराव के कारण गोरी पल्टन के कमाण्डर के सिर में चोट लग गयी और उसने क्रोधित होकर सेना को गोली चलाने के आदेश दे दिये।
अंग्रेजी सेना की गोलाबारी से भीड़ में भगदड़ मच गयी। इसी बीच क्रांन्तिकारी नर सिंह व टीका सिंह अपने अन्य साथियों के साथ मोर्चे पर डटे रहें, जिसे दोनों को अंग्रेजी सेना का शिकार होना पड़ा। क्रान्तिकारी नर सिंह गोली लगते ही घटना स्थल पर शहीद हो गये। जबकि गोली लगने से टीका सिंह ने अल्मोडा़ लाते वक्त रास्ते में ही दम तोड़ दिया। इसके साथ ही दर्जनों आंदोलनकारियों की बेरहमी से पिटाई कर उन्हें जेल में ठूंस दिया। यहां यह भी उल्लेखनीय है। कि सालम क्षेत्र में स्वतंत्रता आंदोलन की षुरूआत 9 अगस्त 1942 से कई वर्श पूर्व हो चुकी थी।
इस आंदोलन का नेतृत्व देष को जै हिन्द्र का नारा देने वाले क्रान्तिवीर राम सिंह धौनी, पं. दुर्गा दत्त षास्त्री ने किया। सन् 1930 में राम सिं धैनी की मत्यु के बाद पं. दुर्गादत्त शास्त्री ने स्व. धौनी के सपनों को सकार करने में अहम् भमिका निभाई। आबादी की इस जंग में जैंती के उत्तम सिंह, कुटौली के मिर्चराम, रेवाधर पाण्डे, चौकुना के श्री धानिक का अविस्मरणीय योगदान रहा है। जिन्होंने गांव-गांव जाकर आजादी की अलख जगाते हुए। युवकों को संगठित किया।
सालम क्षेत्र के रणबांकुरों ने सन्- 1942 के आंदोलन में अंग्रेजी हुकूमत को कुछ समय के लिए सालम में समाप्त कर दिया। यद्यपि अंग्रेज अधिकारियों ने गोरी पल्टन के साथ ही जाट पल्टन को भी सालम भेजा तथा ये दोनों पल्टनें कई महिनों तक सालम में डेरा जमाये रहीं, परन्तु आजादी के इन दीवानों ने अंग्रेजी हुकूमत की नींव को हिलाकर रख दिया। आजादी के बाद धामद्यो में प्रतिवर्ष 25 अगस्त कोशहीदो की याद में शहीद दिवस मनाया जाता हैं।