वन विभाग ने ली राहत की सांस।
देहरादून। पिछले दो दिनों में हुई बारिश के बाद दक्षिण पश्चिम मानसून उत्तराखंड में प्रवेश कर गया है। शनिवार को मौसम विभाग ने इसकी घोषणा कर दी। किसानों व आमजन के साथ वन विभाग के लिए भी यह राहत वाली बात है। वर्षा होने से जंगलों में आग लगने की घटनाएं भी थमेंगी। 15 फरवरी को फायर सीजन शुरू होने के बाद कुमाऊं मंडल में वन में आग लगने की सबसे अधिक घटनाएं अल्मोड़ा डिविजन में सामने आईं। सीमांत पिथौरागढ़ डिविजन दूसरे नंबर पर है। सीमांत चंपावत जिले में वनाग्नि की घटनाएं सबसे कम हुई।
नुकसान के मामले में हल्द्वानी डिविजन के बाद चंपावत दूसरे नंबर पर है। शीतकाल में जनवरी व फरवरी के दौरान इस बार कम बारिश हुई। मार्च से मई के बीच पोस्ट मानसून अवधि में सामान्य से 43 प्रतिशत अधिक वर्षा देखने को मिली। मार्च व अप्रैल में नियमित अंतराल पर बारिश होने से इस अवधि में वनाग्नि की घटनाएं बहुत कम हुई। मई में वर्षा का सिलसिला थमने लगा फिर जून में भी वर्षा के लिए तरसना पड़ा है।
एक से 22 जून के बीच उत्तराखंड में सामान्य की अपेक्षा 43 प्रतिशत कम बारिश हुई है। बढ़ते तापमान के बीच नमी कम होने से वनाग्नि की घटनाओं में वृद्धि देखी गई। इसे देखते हुए वन विभाग ने 15 जून को फायर सीजन समाप्त होने के बाद भी क्रू स्टेशनों को सक्रिय रखने के साथ वनाग्नि बुझाने के लिए नियुक्त अस्थायी कर्मचारियों को भी सेवा में बनाए रखा।
इस बार अल्मोड़ा वन प्रभाग में आग लगने की सर्वाधिक 113 घटनाएं हुईं।
- इसमें वन विभाग के अलावा सिवल सोयम, वन पंचायत क्षेत्र का 152.8 हेक्टेयर जंगल जला। इससे 4.77 लाख से अधिक का नुकसान हुआ।
- पिथौरागढ़ जिले में 104 घटनाओं से 111 हेक्टेयर से अधिक वन क्षेत्र जला और करीब 2.98 लाख की क्षति हुई।
- चंपावत जिले में 25 घटनाओं में 15.52 हेक्टेयर जंगल जला जबकि 34,160 रुपये की क्षति दर्शायी है।
- सबसे कम 27,760 रुपये का नुकसान हल्द्वानी वन प्रभाग को हुआ है।